ट्राफ्फिक में फसे एक अन्थोनी साहब का गुस्सा
या लोकल ट्रेन की भीड़ में अटके शर्माजी का पिछला हिस्सा
सुबह अखबार देने आने वाला अब्दुल का किस्सा
या चौराहे पर खड़े हवालदार ताम्बे का वो बड़ा वाला मस्सा
येहाँ सबकी अकल में और सबकी शकल में
उम्मीद से देखते हुए उस कल में और इस भागते हुए पल में
जीतोड़ मेहनत के फल में
और पानी से सूखा बेचारे मुनिसिपलिटी के नल में
दिखता है ये शहर, इस शहर का छाप
दिखता है प्यार और ज़हन में छुपा थोडा सा पाप
दिखता है इस शहर की तेज़ी, इस शहर की रफ़्तार
दिखते हैं कई आम आदमी और कुछ अवतार
पैसा भी दिखता है और प्यार भी दिखता है
इस रोज़ मर्रा की ज़िन्दगी में कई रास्ता बार-बार भी दिखता है
हर शहर की तरह सुबह भी दिखती है और दिखती है रात भी
पर कुछ कोनो में फिल्मी सितारें और कोशिश की बरात भी
येहाँ भीड़ है फिर भी इलाज सूनेपन का नहीं
लम्बी इमारतें हैं, पर नामोनिशान आँगन का नहीं
दूरियां हैं पर तन्हाईयों का काम नहीं
घर तो फिर भी मिल जाता है यहाँ पर पडोसी का नाम नहीं
यहाँ सबको पाना है, सबको कमाना है
नापसंद कर के भी सबको यहीं रुक जाना है
सड़क की खड्डों को कोसना है और कभी उन पे ही हँसना है,
कभी उसी सड़क के कोने में खड़े होके छुपके से रोना है
क्यूंकि ऐसे ना धड़कता किसी और शहर का गली चौपारा
वो मरीन ड्राइव पे चलना और फलोरा फाउन्टेन का फव्वारा
ना ट्रेन के धक्के खाके रोज़ ऑफिस आना
ना ऑटो-वाले की खिट-पिट और ना टेक्सी-वाले का बहाना
बैठ के सोचो तो सब बुरा है फिर भी कुछ तो अच्चा है
अभी भी यहाँ लोगों के दिल में कुछ तो सच्चा है
बदमाश है पाटिल, पर प्यारा उसका बच्चा है
अमीरों की भीड़ में गरीब यहाँ भी कच्चा है
कई हैं खामियां, रोज़ कमियाँ हैं नई
गन्दगी, धूल, मिट्टी है पर मिट्टी की खुशबू हैं कई
अँधेरी से चेम्बूर, या जाओ कोलाबा से पोवाई
हर वक़्त एक नया ही अहसास दिलाये, ये शहर है मुंबई
Kindly Note: This poem has been written by Promit Mukherjee, from DNA Money, one of the most kickass writer i know :)
1 comment:
beautiful
stunning
perfect
..
ekdum solllidddd!!!
jhakkas..
very true..
very real..
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